हिंदू धर्म में धार्मिक अनुष्ठानों सहित हर विशेष पर्व, त्योहार पर भगवान की पूजा या अभिषेक आदि के लिए शुभ मुहूर्त या फिर उत्तम समय को चयनित किया जाता है. क्योंकि शुभ मुहूर्त व पवित्र समय में की गई पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है और मनोकामनाओं को भी सिद्ध किया जा सकता है. ऐसे में फिलहाल देशभर में महाशिवरात्रि की धूम मची हुई है. हर तरफ हर हर महादेव के जयकारों की गूंज है. वहीं शिवालयों में भी भगवान शिव की महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा अर्चना की तैयारियां हो चुकी हैं.

महाशिवरात्रि की तैयारियों के बीच महादेव के भक्तों में शिव पूजन के लिए शुभ मुहूर्त के बारे में सर्चिंग चालू है. महाशिवरात्रि के दिन प्रातः भगवान शिव का पूजन करने के के साथ रात्रि में जागरण करके चारों प्रहर पूजा करने का विधान माना गया है. जिसमें से निशित काल को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. लेकिन कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर निशित काल क्या होता है और क्यों इस काल में पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है? तो आइए इस बारे में भोपाल के ज्योतिषाचार्य डॉ अरविंद पचौरी से विस्तार से जानते हैं महाशिवरात्रि के दिन निशित काल में पूजा का महत्व.

क्या होता है निशित काल?
शास्त्रों के अनुसार, निशित काल उस समय को कहा जाता है जब रात्रि अपने मध्य में होती है. निशित काल की अवधि एक घंटे से भी कम होती है. पंचांग के अनुसार इसे रात का आठवां मुहूर्त कहा जाता है जो कि ज्योतिषीय गणनाओं के बाद निर्धारित किया जाता है. इस काल में पूजा करने पर शांत वातावरण में सभी शक्तियां आपकी साधना से शीघ्र प्रसन्न होती हैं.

महाशिवरात्रि के दिन निशित काल में पूजा का महत्व क्यों?
महाशिवरात्रि के दिन निशित काल में पूजा करने का महत्व माना गया है. क्योंकि मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव पृथ्वी पर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे, वह निशितकाल का ही समय था. यही कारण है कि भगवान शिव की विशेष पूजा के लिए निशितकाल को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. खासकर शिवलिंग पूजन के लिए निशितकाल अच्छा समय माना जाता है. बता दें कि शिव मंदिरों में भी शिवलिंग पूजा, अनुष्ठान लगभग इसी समय किया जाता है. इसके अलावा यह दिन भगवान शिव के विवाह का दिन है इसलिए महाशिवरात्रि के दिन रात्रि के समय जागकर चारों प्रहर की पूजा करने का भी विधान माना गया है.

महाशिवरात्रि चार प्रहर पूजा मुहूर्त
महाशिवरात्रि का व्रत 26 फरवरी दिन बुधवार को किया जाएगा. वैदिक पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी, सुबह 11 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी व 27 फरवरी, सुबह 8 बजकर 57 मिनट पर इसका समापन होगा.

निशित काल पूजा मुहूर्त – रात 12 बजकर 8 मिनट से रात 12 बजकर 58 मिनट तक, इसकी कुल अवधि 50 मिनट रहेगी.

चार प्रहर की पूजा का समय
1- रात्रि प्रथम प्रहर पूजा का समय: शाम 6 बजकर 19 मिनट से रात्रि 9 बजकर 26 मिनट के बीच
2- रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा का समय: रात्रि 9 बजकर 26 मिनट से मध्यरात्रि 12 बजकर 34 मिनट के बीच (27 फरवरी)
3- रात्रि तृतीय प्रहर पूजा का समय: मध्यरात्रि 12 बजकर 34 मिनट से मध्यरात्रि 3 बजकर 41 मिनट के बीच (27 फरवरी)
4- रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा का समय: सुबह तड़के 3 बजकर 41 मिनट से सुबह 6 बजकर 48 मिनट के बीच (27 फरवरी)