आद्य संवाददाता देवर्षि नारद जयंती शनिवार को उज्जैन नगर में पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाई गई। इस अवसर पर विश्व संवाद केंद्र, उज्जैन के द्वारा "देवर्षि नारद लोक चिंतन में सूचना-संचार के प्रथम प्रणेता" विषय पर एक परिचर्चा सुदर्शन हॉल, भारत माता मंदिर परिसर पर आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता राजेश सिंह कुशवाह कार्यपरिषद सदस्य, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने की। वहीं, मुख्य वक्ता के रूप मे सिद्धार्थ शंकर गौतम, प्रचार व संपर्क प्रमुख, एकल संस्थान (एकल विद्यालय अभियान) के साथ ही वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. गीता नायक भी विशेष अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में शामिल हुई।

इस प्रति चर्चा की शुरुआत भगवान नारद के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुई, जिसके बाद अतिथि परिचय उदित सिंह सेंगर द्वारा दिया गया। परिचर्चा की शुरुआत में मुख्य वक्ता सिद्धार्थ शंकर गौतम ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि देवर्षि नारद एक ऐसा महान व्यक्ति है, जिनका जीवन प्रेरणास्पद है। नारद जी लाइव रीपोर्टिंग करते थे वे दानवो, गंधर्व, देव सभी को समान रूप से सूचना देते है। चारों युग में नारद की प्रासंगिकता आज भी है। अगर आप नारद पुराण का अध्ययन करेंगे तो आपको पता चलेगा कि नारद जी में अहंकार तनिक मात्र भी नहीं था। नारद जी के चरित्र से कही बातों को सीखा जा सकता है। लेकिन वर्तमान में नारद जी के जीवन को सही तरीके से प्रदर्शित नहीं किया जा रहा है। आज उन्हें गॉसिप गार्ड के रूप में पहचान देने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि सरासर गलत है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह ने बताया कि देव ऋषि नारद लोक कल्याण के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। उनकी बातों में इतनी सच्चाई होती थी कि तत्काल उनकी बातों को मान लिया जाता था। उनकी बातों की सत्यता का परीक्षण नहीं किया जाता था। लेकिन आज की पत्रकारिता में खेमेबाजी है। पत्रकार भले ही देश को बदल नहीं सकते, लेकिन सत्य पर चलकर बदलाव का प्रयास जरूर कर सकते हैं।

परिचर्चा के दौरान वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. गीता नायक ने संबोधित करते हुए कहा कि देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं। क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष/पुरोधा पुरुष/पितृ पुरुष हैं। जो इधर से उधर घूमते हैं, तो संवाद का सेतु ही बनाते हैं। जब सेतु बनाया जाता है तो दो बिंदुओं या दो सिरों को मिलाने का कार्य किया जाता है।

दरअसल, देवर्षि नारद भी इधर और उधर के दो बिंदुओं के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने के लिए संवाददाता का कार्य करते हैं। इस प्रकार नारद संवाद का सेतु जोड़ने का कार्य करते हैं तोड़ने का नहीं। परंतु चूंकि अपने ही पिता ब्रह्मा के शाप के वशीभूत (देवर्षि नारद को ब्रह्मा का मानस-पुत्र माना जाता है। परिचर्चा के दौरान ललित ज्वेल, सुशील शर्मा, गोपाल गुप्ता, डॉ. राजेंद्र नागर निरंतर, शिवेंद्र तिवारी के साथ बड़ी संख्या में पत्रकारगण उपस्थित रहे।