लेखक-रास बिहारी शरण पाण्डेय, रिसर्चर                               

भगवान राम व अत्रि मुनि की तपोस्थली चित्रकूट जो मध्यप्रदेश व उत्तर-प्रदेश मे स्थित है। चित्रकूट बहुत ही प्राचीन एवं पवित्र तीर्थ स्थलोें मे से एक है यहाॅ पर कई युगों से भगवान राम के दर्शन की अभिलाषा को लिये हुये साधु-सन्त तपस्यारत थे । महामुनि अत्रि अपनी पत्नी अनुसुइया के साथ सृष्टि के सृजन के उपरान्त से ंही यहाॅ पर निवास कर रहे थे सती अनुसुईया ने यही पर त्रिदेवों को छः मास केेे शिशु के रूप मे कई दिनों  तक पालन-पोषण किया । लेकिन चित्रकूट का महत्व तब और अधिक हुआ जब त्रेता युग मे भगवान राम ने वनवास के समय अपनी भार्या सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 12 वर्ष तक चित्रकूट मे स्थित कामदगिरी पर्वत पर निवास किया है। उनको कोई कष्ट न हो और उनकी सेवा के भाव से उनके रहनेे के लिये  पर्णकुटी का निर्माण भी सभी देवताओं नें वेश बदलकर चित्रकूट मे किया -

   कोल  किरात  वेष देव सब  आये ।
   रचे परन  तृन  सदन सुहाये।।
   बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला ।   
    एक ललित  लघु एक बिसाला।।

अर्थ-सब देवता कोल-भीलों के वेष मे आये और उन्होंने पत्तों और घासों के सुन्दर घर बना दिये । दो ऐसी सुन्दर कुटिया जिनका वर्णन नही हो सकता । उनमें एक  छोटी सी थी और दूसरी उससे बड़ी थी।जब भगवान राम यहाॅ पर निवासरत थे तब उनके दर्शन के लिये देव, गंधर्व,  किन्नर सभीे चित्रकूट पर विचरण करनेे के कारण  यह भूमि तपोस्थली से देव स्थली बन गयी  थी - 

अमर नाग किन्नर  दिसिपाला।   
चित्रकूट  आये तेहि काला। 
राम प्रनामु कीन्ह सब काहु । 
मुदित देव लहि लोचन लाहू ।।

उस समय देवता ,नाग, किन्नर और दिक्पाल चित्रकूट मे आये और श्री रामचन्द्र ने सब किसी को प्रणाम किया । देवता नेत्रों का लाभ पाकर आनन्दित हुये। 
चित्रकूट मे सभी जीव जिसमे कोल किरात, वन्य जीव, पर्वत, पेड़-पौधे नदियाॅ  आदि सभी बहुत महत्व हो गया- 
 कामद  भे  गिरी  प्रसादा ।  अवलोकत  अपहरत विषादा।।
 सर सरिता बन भूमि विभागा।
 जनु उमगत आनँँद अनुरागा।।

भावार्थ- श्री रामचन्द्र की कृपा से सब पर्वत मनचाही वस्तु देने वाले हो गये  हो गये। वे देखने मात्र से ही दुःखो को सर्वथा हर लेते थे । वहाॅ के तालाबों नदियों, वन और प्रथ्वी के सभी भागों मे मानों आनन्द और प्रेम उमड़ रहा है। इसी आनन्द मे रहते हुये सभी के साथ भगवान ने 11 वर्ष 11 माह और 11 दिन बिताने के उपरान्त जब भगवान राम कामदगिरि पर्वत से जाने लगे तब कामदगिरि प्रकट हो भगवान राम से बहुत दुखी होकर बोले कि प्रभु जब तक आप यहाॅ पर थे तब तक तो देवलोक से देवता भी वेश बदलकर मेरी परिक्रमा करते रहे लेकिन अब आप के जाने के बाद यह स्थल महत्वहीन हो जायेगा ,तब भगवान राम ने कहा कि आज से यह लोगो की सभी मनोकामना पूर्ण करने वाला तीर्थ होगा और इसे  कामदगिरि (कामनाओं को पूर्ण करने वाले पर्वत ) के नाम से सभी लोको मे जाना जायेगा ,किसी भी तीर्थ का फल तभी प्राप्त होगा जब वह कामदगिरि की परिक्रमा करेगा। तभी से चित्रकूट मे कामदगिरि की परिक्रमा का प्रचलन हुआ कामदगिरि की परिक्रमा करने का अर्थ है भगवान श्री राम की परिक्र्रमा वह कामदगिरि के रूप मे स्वयं यहाॅ विराजमान है। 
कामदगिरि की परिक्रमा तो वर्ष मेे कभी भी की जा सकती है लेकिन कार्तिक की अमावस्या व सावन के महीने का विशेष महत्व है सावन के महीने मे यहाॅ पर लगने वाला मेला व झूला बहुत प्रसिद्ध है। पाॅच किलोमीटर की पैदल चल कर परिक्रमा को पूर्ण करने मे लगभग एक से डेढ़ घण्टे का समय लगता है  तथा कुछ लोग लेट कर भी परिक्रमा करते है इसमे 8-10 घण्टे का समय लगता  है। कामदगिरि के मुखारबिन्दु के दर्शन के बाद सम्पूर्ण परिक्रमा मार्ग पर स्थित चार द्वारों मे से प्रथम द्वार से शुरू होकर  (यह चार द्वार भगवान राम के वनवास के समय से हैं, यही से श्री राम आते जाते थे। ऐसा माना जाता है कि- यह चारो द्वार मनुष्य के लिये वेदों मे वणर््िात चार पुरूषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के परिचायक है। ) पुनः कामदगिरि के दर्शन के पश्चात पूर्ण होते है परिक्रमा मार्ग मे प्रथम द्वार पर बांके बिहारी जी का मन्दिर हनुमान गढ़ी या बडा हनुमान जी का मन्दिर, कामना देवी अष्टभुजी देवी का मन्दिर, काली माता मन्दिर, भगवान शिव जी का पंचमुखी मन्दिर , श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर , प्राचीन अनादि श्री कामदनाथ मुखर बिन्द मन्दिर , नरसिंह मन्दिर , महानिर्वाणी अखाडा, श्री धनुषधारी मन्दिर , श्री साक्षी गोपाल मन्दिर , बद्री नारायण मन्दिर , गुरू वशिष्ठ आश्रम , भरत मिलाप , प्राचीन ब्रम्हा रमा बैकुण्ठ कामत नाथ मन्दिर , विराज कुण्ड,लेटे हुये हनुमान मन्दिर, श्री कामधेनु माता का मन्दिर,श्री साकेत बिहारी आश्रम, लक्ष्मण पहाडी , नरसिंह अवतार दर्शन मन्दिर, लक्ष्मण झूला मन्दिर के बाद तृतीय मुख बिन्दु या प्रवेश द्वार आता है इसके उपरान्त फिर बरहा हनुमान जी का मान्दिर ,पीली कोठी, श्री वनवासी राम मन्दिर इसके उपरान्त चैथा द्वार आता है यहाॅ पर दक्षिण मुखी हनुमान मन्दिर, विजय राघव हनुमान जी का मन्दिर ,बलदाउ मन्दिर के बाद जगदीश मन्दिर और फिर बांके बिहारी मन्दिर के बाद कामदनाथ मन्दिर और यहाॅ से परिक्रमा पूर्ण हो जाती है।    
भरतमिलाप- परिक्रमा मार्ग मे स्थित भरत मिलाप चित्रकूट के प्राचीनतम् स्थलों मे से एक है । जब भगवान राम के वनवास के बारे मे उनके भाई भरत को ज्ञात हुआ तो वह उनको पुनः अयोध्या के राजा बनाना चाहते थे। इसलिये वो अपने गुरू, माताओं, भाई आादि के साथ भगवान राम से मिलने चित्रकूट पहुॅचे । चित्रकूट के जिस स्थान पर भगवान राम और भरत का मिलाप हुआ वह स्थल भरत मिलाप के नाम से जाना जाने लगा
बरबस  लिये  उठाई उर  लाये  कृपानिधान ।
भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान।।

भावार्थ- कृपा-निधान श्री रामचन्द्रजी ने भरत जी को जबरजस्ती चरणांे से उठाकर हृदय से लगा लिया भरतजी और श्री राम जी के मिलन की रीति को देखकर सबको अपनी सुध भूल गयी है। 
 कहते है कि जब राम और भरत का मिलाप हुआ तो उनके प्रेम को देखकर यहाॅ कि शिलायें भी द्रवित हो गयी थी जिसके निशान यहाॅ पर आज भी मौजूद है यहाॅ कि शिलाये देखने मे पिघली सी प्रतीत होती है।  
लक्ष्मण पहाड़िया- लक्ष्मण पहाडिया कामदगिरि के समीप एक पहाडी है इस पहाडी मे लगभग 300 सीढ़ी है । यहाॅ से पूरे चित्रकूट को देखा जा सकता है। वनवास के समय मे लक्ष्मण भगवान राम और माता सीता की रखवाली करते थे उनके पदचिन्ह आज भी यहाॅ उपस्थित है । लक्ष्मण पहाडिया मे भगवान राम और सीता सहित चारो भाईयों के मन्दिर निर्मित है । यहाॅ पर खम्भों को भेटने की प्रथा है मान्यता है कि चारो भाइयों ने यहाॅ एक दूसरे से गले मिले थे इसलिये इन खम्भों का भाइयों का प्रतीक स्वरूप मानते है यही समीप मे ही सीता रसोई भी है यहा पर माॅ सीता भोजन बनाती थी। इस पहाडी की मान्यता है कि जो यहाॅ के पत्थर को जोड़ के रखता है उसकी  सारी मनोकामना पूर्ण होती है। 
भरतकूप- यहाॅ पर एक कुआॅ भी है जिसे भरतकूप के नाम से जाना जाता है रामचरित मानस मे वर्णन मिलता है कि जब भरत चित्रकूट राम के राज्याभिषेक की इच्छा से आये थे वो साथ मे अभिषेक की सारी सामाग्री भी लाये थे । सभी तीर्थो का जल भी था लेकिन राम ने राजा बनना नही स्वीकार किया तो भरत जी ने अत्रि मुनि की आज्ञा से यहाॅ एक कूप मे सारा जल डाल दिया । इस कुआॅ का जल बहुत मीठा व औषधि गुण वाला है लोगो का मानना है कि इसके जल से स्नान करने से त्वचा सम्बन्धी विकार नष्ट हो जाते है तथा यहाॅ पर स्नान करने से सभी तीर्थोें का पुण्य प्राप्त होता है।
अत्रि कहेउ तब भरत सन सैल समीप सुकूप ।
राखिय तीरथ तोय तहॅ पावन अमिय अनूप।।

भावार्थ- तब अत्रि जी ने भरत जी से कहा - इस पर्वत के समीप ही एक सुन्दर कुआॅ है। इस पवित्र , अनुपम और अमृत जैसे तीर्थजल को उसी मे स्थापित कर दीजिये।

श्री साक्षी गोपाल मन्दिर- परिक्रमा मार्ग पर स्थित साक्षी गोपाल मन्दिर की मान्यता है कि कामदगिरि की परिेक्रमा पूरी के उपरान्त यहाॅ दर्शन किया जाता है कि क्योेेिक यह कामना की सिद्धि प्राप्त करने के साक्ष्य के रूप में विराजित है। 
हनुमान धारा मन्दिर- हनुमान जी को चित्रकूट बहुत ही प्रिय है यही पर ही हनुमान जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिये थे। कामदगिरि प्रदक्षिणा मार्ग मे हनुमान जी के बहुत सारे मन्दिर देखने को मिल जाते है । 
चित्रकूट ऐसा स्थल है जो प्राणी को दैहिक एवं भौतिक ताप से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि हनुमान जी के लंकादहन के उपरान्त अग्नि का ताप हनुमानजी को कष्ट दे रहा था तब भगवान राम ने उन्हे कि तुम चित्रकूट पर्वत पर चले जाओं वहाॅ कीे शीतल हवा से तुम्हें आराम मिलेगाा। तब से हनुमान जी यही निवास करने लगे। 
पुरानी लंका चित्रकूट - कामदगिरि चित्रकूट मे एक जगह है जिसे पुरानी लंका के नाम से जाना जाता है । एक किवदन्ती के अनुसार - तुलसीदास जी ने यहाॅ रामलीला का आयोजन किया था रामलीला मे जब सीताहरण का दृश्य  चल रहा था वहाॅ पर स्थापित जानकी माता की मूर्ति से अश्रु धारा बहने लगी थी तभी से इसका नाम पुरानी लंका हो गया।   
चित्रकूट एक ऐसा पावन तीर्थ स्थल है जहाॅ पर सामाजिक भेदभाव से परे एक समाज की कल्पना ही नही जीवंत समाज रहा भी है । भगवान राम जो इतने बडे़ कुल मे जन्म लेने के बाद भी बिना किसी भेदभाव के वनवासी, कोल और किरातों के साथ रहें है। यह भारतीय समाज की  संस्कृति और पराम्परा का सबसे बडा़ उदाहरण है कि यहाॅ पर समाज मे कोई भेदभाव नही था । निषाद राज गुहा मर्यादापुरूषोत्तम राम का सखा था साधु सन्तो के आश्रम मे भी वह राम के साथ ही बैठता था। इन्ही सभी कारणो से ही यह स्थल पवित्र और प्रदक्षिणा योग्य बना ।