मुंबई। मुंबई में अदालतों पर काम का बोझ इतना ज्यादा है कि दस-दस सालों से कुछ केसेस खुले तक नहीं हैं. कुछ मुलजिमों ने तो मुजरिम बनने से पहले ही मिलने वाली सजा से ज्यादा वक्त कैद में बिता दिया है. अब ऐसे कैदी तो यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें अदालत भले ही दोषी करार दे, लेकिन फैसला बहाल करे. खबर है कि एक अदालत ने तो कहा है कि उसके पास 72 से ज्यादा केसेस हैं, जिनके 255 से ज्यादा आरोपी जेल में हैं. इन प्रलंबित मामलों में कई ऐसे मल्टिपल केसेस हैं जिनका ट्रायल दस साल बाद अब शुरू होने जा रहा है. इन मामलों के आरोपियों ने सिर्फ इस आधार पर जमानत की गुहार लगाई है कि उनके केस की सुनवाई शुरू होने में देरी हो रही है. उधर मुंबई के दो स्पेशल कोर्ट ने साफ तौर से यह बता दिया है कि उन पर कामों का बोझ हद से ज्यादा है. ये अदालतें गैरकानूनी कार्रवाइयों को रोकने के लिए बने कानूनों के तहत सुनवाई करती हैं. लेकिन सुधार की दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा, इसका जवाब कोई नहीं दे रहा.

मुंबई ट्रिपल ब्लास्ट केस, 11 सालों बाद भी 11 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल शुरू नहीं
मिसाल के तौर पर 2011 के मुंबई ट्रिपल ब्लास्ट केस को ही उठा लें. आरोपी ही नहीं, यहां तक कि महाराष्ट्र एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) तक ने आतंकी हमले के 11 साल गुजर जाने के बाद 11 आरोपियों के खिलाफ डे टू डे सुनवाई के लिए अगस्त में एक अर्जी देकर रखी है. 13 जुलाई, 2011 को दादर के जवेरी बाजार और ओपेरा हाउस में तीन सीरियल ब्लास्ट में 27 लोगों की मौत हुई थी और 100 लोग घायल हुए थे. इस केस में 700 से ज्यादा गवाह हैं. आरोपियों के खिलाफ आरोपों को एक अलग प्रोसीडिंग्स में 2019-21 के दौरान फ्रेम कर दिया गया है, लेकिन ट्रायल अब तक शुरू नहीं हुआ है. एटीएस और आरोपी नदीम अख्तर दोनों ने जब डे टू डे सुनवाई के लिए अपील की तो जज ने कहा कि उनसे पहले वाले जज ने एक आदेश पास किया है जिसके मुताबिक इस केस में प्रतिदिन की सुनवाई संभव नहीं है. कोर्ट के पास पहले से ही तय पुराने केसेस की सुनवाई का काम पड़ा हुआ है. कोर्ट ने एटीएस की अपील खारिज कर दी और नदीम अख्तर को यह कह कह फटकारा कि वह रोज-रोज इस सबंध में अपील करता रहता है, इसके पीछे जरूर उसकी कोई छुपी हुई नीयत है.

पुणे की सीरियल ब्लास्ट का मामला, 10 सालों से केस नहीं खुला
साल 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अरोपी हारून नाइक की जमानत की अर्जी यह कह कर खारिज कर दी थी कि उसके खिलाफ प्राइमा फेसी एविडेंस है. लेकिन साथ ही जल्दी सुनवाई करने का भी निर्देश दिया था. लेकिन उसकी जमानत अर्जी और अख्तर की अर्जी अब तक हाईकोर्ट में लंबित है. इसी तरह का 10 साल पुराना (1 अगस्त 2012) जे एम रोड पुणे के 5 ब्लास्ट का मामला 9 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज है. इसमें भी एक आरोपी मुनिब मेमन ने केस शुरू होने में देरी की वजह से जमानत की अपील की है. लेकिन अदालत ने कहा कि मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए सिर्फ देरी के आधार पर जमानत मंजूर नहीं की जा सकती. इस केस के कुछ आरोपियों का यह कहना है कि भले ही गुनहगार सिद्ध करो, लेकिन फैसला जल्दी करो.

मालेगांव ब्लास्ट के 2006 के मामले में भी सुनवाई शुरू नहीं हुई
इसी तरह साल 2006 के मालेगांव ब्लास्ट केस में भी ट्रायल शुरू नहीं हुआ. ब्लास्ट के 15 सालों के बाद आरोपी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 6 सालों तक जेल में समय गुजारने के बाद जमानत दे दिया.