राष्ट्रपति मुर्मू ने संस्कृति, परंपराओं को जीवित रखने का आह्वान किया
हैदराबाद| राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को हमारी संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को जीवित रखने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि इससे हमारी विरासत को संरक्षित करने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने भद्राचलम में वनवासी कल्याण परिषद, तेलंगाना द्वारा आयोजित सम्मक्का सरलाम्मा जनजाति पुजारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही।
यह देखते हुए कि जनजातीय लोग, विशेष रूप से कोया समुदाय के लोगे, समाक्का सरलाम्मा से प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते हैं, राष्ट्रपति ने कहा कि इस तरह के त्योहार और सभाएं सामाजिक सद्भाव को मजबूत करती हैं। इन गतिविधियों से हमारी परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती हैं। उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए वनवासी कल्याण परिषद, तेलंगाना की सराहना की। उन्हें प्रसन्नता जताई कि परिषद वनवासियों के सर्वागीण विकास के लिए निरंतर प्रयासरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रगति के सभी आयामों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी हमारे समाज और देश के समग्र विकास के लिए आवश्यक है। यह संतोष की बात है कि वनवासी कल्याण परिषद महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में आगे ले जाने के लिए विकास केंद्र चला रहा है। परिषद ग्रामीण विकास के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में शिविर भी आयोजित कर रहा है। उन्होंने इस तरह के कल्याणकारी और विकासात्मक पहल के लिए परिषद की सराहना की।
इससे पहले उन्होंने केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्धन अभियान (प्रशाद) योजना के तहत भद्राचलम मंदिर समूह में तीर्थ सुविधाओं के विकास के लिए आधारशिला रखी। उन्होंने कहा कि तेलंगाना के प्रसिद्ध मंदिरों में लाखों तीर्थयात्री आते हैं। देशी-विदेशी पर्यटकों में बड़ी संख्या तीर्थयात्रियों की होती है। इस प्रकार घरेलू पर्यटन को बढ़ाने में तीर्थ पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पर्यटन लोगों की आजीविका के अवसरों और आय को बढ़ाता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। उन्होंने 'प्रसाद' योजना के तहत तीर्थ स्थलों के विकास के माध्यम से आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय की भी सराहना की।
इसके बाद राष्ट्रपति ने वारंगल जिले में रामप्पा मंदिर (रुद्रेश्वर मंदिर) का दौरा किया, जहां उन्होंने पर्यटन के बुनियादी ढांचे के विकास और कामेश्वरालय मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए आधारशिला रखी।